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H**.
Best for rationale development!
One of the best books to understand human development by combining history and biology. Clears a lot of common misconceptions. Go for it.
R**T
Must read book
गहराई से मनुष्यों को अपने इतिहास के बारे में जानना हो ,तो इससे बेहतर कोई किताब नहीं है।तो पढ़ते रहिए ,और आगे बढ़ते रहिए।गौहर रजा जी की, " मिथक से विज्ञान तक" भी पढ़ी जानी चाहिए।
S**A
It's good
The book knowledge is amazing no doubt! But problem is it's print quality is low , difficult to read sometimes
B**R
Must read
Must read for a person interested in history, and future, of mankind. Some interesting theories have been presented. You may not agree with all that is written, but it will provoke you to think about our society and our collective future.There are minor typos in the Hindi version.
A**T
A research on purpose of Sapiens
बहुत बेहतरीन बुक, इस बुक की सबसे बड़ी खासियत यह बुक हमें बस अलर्ट करती है, अच्छा होगा बुरा होगा कोई नहीं जानता,अभी तक जो हुआ है मानव इतिहास में वह अच्छा हुआ या बुरा हुआ उसका भी कोई ठोस निष्कर्ष नहीं।मुझे नहीं पता यह पढ़ कर आपको कैसा लगेगा, लेकिन मुझे लगता है यह बुक सभी को पढ़ना चाहिए।
A**I
मानव-जाति का समीक्षात्मक इतिहास
वैसे तो सेपियन्स पुस्तक में राजनीति, समाज-शास्त्र, अर्थशास्त्र, धर्म, दर्शन, गणित, विज्ञान (भौतिकी, रासायनिकी, जैविकी सहित मनोविज्ञान भी), तकनीक और इतिहास सभी विषयों पर बराबर चर्चा की गई है, परन्तु प्रस्तुत पुस्तक का केन्द्रीय विषय 'मानविकी' है। जिसमें मनुष्य (होमो) जाति की प्रजातियों (सेपियन्स, इरेक्टस, निएंडरथल आदि) के भिन्न-भिन्न मार्गों से होते हुये वैश्वीकरण की चौखट में आने तक का इतिहास बताया गया है। सेपियन्स प्रजाति के अन्य प्राणियों से स्वयं की पृथक छवि गढ़ने के इतिहास को लेखक ने बहुत ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है। लेखक के शब्दों में कहूँ तो एक महत्त्वहीन प्राणी से देवता बनने तक की यात्रा कही गई है...प्रस्तुत पुस्तक में यह प्रश्न बार-बार उठता रहा है कि सेपियन्स प्रजाति की अब तक की इस यात्रा में क्या ऐसे मोड़ आए हैं, जहाँ से वैकल्पिक मार्गों का अनुसरण किया जा सकता था या जिनसे भिन्न परिणामों की प्राप्ति हो सकती थी? लेखक ने इस प्रश्न के उत्तर या उसकी रूपरेखा बनाने के लिए इतिहास की व्याख्यात्मक शैली के बजाय ठोस ऐतिहासिक तथ्यों को आधार बनाया है। ऐतिहासिक प्रमाणों के मापदंडों, ऐतिहासिक संयोगों, वस्तुनिष्ठता और एक आदर्श या बेहतरीन समाज की चाह में विकल्पों का सम्बन्ध भविष्य-निर्माण से जोड़कर के लेखक ने अपनी विशेषज्ञता (इतिहासकार होने) को सिद्ध किया है।उपरोक्त प्रश्न के उत्तर पर चर्चा करते हुए प्रो. हरारी ने एक ऐसी युक्ति का सहारा लिया है जिसका प्रयोग बहुत कम इतिहासकार करते हैं। जिसके अनुसार वर्तमान उपलब्धियों की सार्थकता पर प्रश्न चिह्न लगाकर के इतिहास की समीक्षा करना, ताकि भविष्य के लिए वर्तमान अच्छी तरह से परिभाषित हो सके। इसी के प्रयास में प्रो. हरारी ने मानव-जाति की वर्तमान उपलब्धियों द्वारा ख़ुशी को वस्तुनिष्ठ परिभाषित किया है। जी हाँ, वही ख़ुशी जो कि एक व्यक्तिगत मामला है। ऐसा करने से न्याय की माँग प्रबल हो जाती है जिसका लेखक के अनुसार इतिहास में पूर्णतः अभाव रहा है।वैश्विक परिप्रेक्ष्य में उदाहरण द्वारा इतिहास की समीक्षा करते हुए इतिहासकार हरारी ने वामपंथी और दक्षिणपंथी, समाजवाद और पूंजीवाद, राजतंत्र और लोकतंत्र, स्वतंत्रता और समानता, उदारवादी और फासीवादी दर्शनों के अति करने के परिणामों को चित्रित किया है। जिससे समाज में सामाजिक घटकों के मध्य समन्वय की जरूरत सामने आने लगती है या यों कहें कि मध्यम मार्ग का स्वरूप स्पष्ट होने लगता है।यह सबसे अच्छा समय था, यही सबसे बदतर समय था।- चार्ल्स डिकेन्स (फ्रांसीसी क्रान्ति के बारे में जिसे हर युग के लिए सत्य कहा जा सकता है।)लेखक ने पुस्तक के शुरूआती अध्यायों में यह समझाया कि मनुष्य केवल प्राथमिक रूप से ही एक सामाजिक प्राणी है। वर्तमान आँकड़ों और मनो-वैज्ञानिक शोधों के आधार पर समाज के स्वरूप और उसके आकार के बारे में चर्चा की गई है ताकि काल्पनिक व्यवस्थाओं के प्रभावों को और अधिक स्पष्टता के साथ समझा जा सके। बहु-ईश्वरवाद से एक-ईश्वरवाद या संवैधानिक ढाँचों के निर्माण तक तथा क्षेत्रीय समाज से वैश्विक समाज निर्मित करने में ऐतिहासिक संयोगों के योगदानों की चर्चा की गई है जिनके चयन के बाद उनके प्रभावों से बच पाना न ही तब मानव-जाति के लिए संभव था और न ही आज संभव है। लेखक के अनुसार सुधार के नाम पर हम केवल व्यापक कल्पित व्यवस्था का सुझाव दे सकते हैं।प्रो. हरारी का तुलनात्मक अध्ययन हमें इतिहासकार थॉमस कुह्न के पैराडाइम और उसकी शिफ्टिंग की याद दिलाता है। विशेष रूप से अर्थ-व्यवस्था और धर्म के विषयों में। जिस प्रकार प्राकृतिक विज्ञान में कार्य-कारण सिद्धांत का अध्ययन किया जाता है उसी तरह कड़ाई के साथ लेखक के द्वारा सामाजिक क्षेत्र में भी कार्य-कारण सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास किया गया है। लेखक की यही शैली या कहें उसका प्रयास इस पुस्तक को विशेष बनाता है।
A**R
Good book
Nice print and page
Trustpilot
2 weeks ago
2 months ago